
06 Sep जानिए श्राद्ध में क्यों नहीं किये जाते हैं शुभ काम
जानिए श्राद्ध में क्यों नहीं किये जाते हैं कोई भी शुभ काम
हमारी भारतीय संस्कृति में श्राद्ध का संबंध हमारे पूर्वजों के मृत्यु के दिन से है। अतः श्राद्ध पक्ष नए और शुभ कार्यों के लिए अशुभ माना जाता है।जिस प्रकार हम अपनी किसी परिजन की मृत्यु के बाद शोक में रहते हैं और अपने नए, शुभ और व्यवसायी कार्य कुछ दिनों के लिए रोक देते हैं। उसी प्रकार पितृ पक्ष में भी शुभ कार्यों के लिए रोक लग जाती है।
श्राद्ध पक्ष की 16 दिनों की अवधि में हम अपने पितृ गण तथा हमसे हमारे पितृगण जुड़े रहते हैं। अतः शुभ कार्यों को वंचित रखकर हम अपने पितृगण के प्रति पूरा सम्मान और एकाग्रता बनाये रखते हैं।
धर्मानुसार पितृ ऋण
शास्त्रों के अनुसार मनुष्य के मनुष्य योनि में जन्म लेते ही उसके ऊपर तीन प्रकार के ऋण समाहित हो जाते हैं। इन तीन ऋणों में से एक ऋण है पितृऋण। अतः धर्मशास्त्र में पितृपक्ष में श्राद्ध कर्म के अर्ध्य ,तर्पण तथा पिंडदान के माध्यम से पितृऋण से मुक्ति पाने का रास्ता बताया गया है। शास्त्रों के अनुसार पितृऋण से मुक्ति पाए बिना व्यक्ति का कल्याण होना असम्भव है। शास्त्रानुसार पृथ्वी से ऊपर सत्य ,तप ,महा ,जन ,स्वर्ग ,भुवः ,भूमि ये सात लोक माने गए हैं। और इन सात लोकों में से भुवः को पितृ लोक माना गया है।
श्राद्ध पक्ष की सोलह दिन की अवधि में पितृगण पितृलोक से चलकर भूलोक को आते हैं। इन सोलह दिन की अवधि में पितृलोक पर जल का अभाव हो जाता है। अतः पितृपक्ष में पितृगण पितृलोक से भूलोक आकर अपने वंशजों से तर्पण करवाकर तृप्त होते हैं।
अतः जब व्यक्ति पर ऋण अर्थात कर्जा हो तो वह ख़ुशी मनाकर शुभ कार्य कैसे कर सकता है। पितृऋण कारण ही पितृपक्ष में शुभ कार्य नहीं जाते हैं।
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